Find Me at :

Ads 468x60px

September 27, 2011

अवसर

          प्रिय पाठकों, नमस्कार | मेरी पिछली पोस्ट पर उत्साहवर्धन के लिए मै आप सब का शुक्रगुजार हूँ | जहाँ मेरी पिछली कविता कोरी कल्पना पर आधारित थी, आशा करता हूँ कि आज की कविता आपको वास्तविकता के धरातल पर ले आएगी |
नवरात्रि और दुर्गापूजा की ढेरो शुभकामनाओं के साथ,
-अनाड़ी Ashish


    एक मकड़ी 
    भटक रही है,
    छत से लटके जाले में,
    व्याकुल,
    शिकार की तलाश में,
     जैसे हफ़्तों से 
    उसे, खाने को कुछ न मिला हो|

    इतने में 
    एक पतंगा, अभागा 
    जा फंसा जाले में
    फड़फड़ाता हुआ,
    और मकड़ी ने
    उसे खाया,
    बड़े चाव से|

2 ने कुछ कहा:

Ganesh Gopalasubramanian said...

Ashish! Hunger and satiation are always great metaphors in creating poetry... u tried ur best it seems gud

Ashish S said...

Thank you Ganesh for your encouraging words...i guess people like to read more fantasy, love and dreams :):)

Post a Comment