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November 27, 2011

मैं फिर अकेला हूँ...




जिन्दगी सिसक रही थी    
ठहरा-ठहरा था सब,    
बेज़ार, बेरंग पतझड़ सा;    

तुम आई    
लगा जीना कुछ है    
एक उद्देश्य मिला था    
रोशनी देखी थी तुममें;    

    फिर हवा का झोंका आया
    ले गया नव-कुसुमित खुशियों को,
    रोशनी को, तुमको
    मुझसे छीन; कहीं दूर;

    एक बार फिर अँधेरा है
    फिर जिन्दगी वीरान है
    एक बार फिर अकेला हूँ मैं |

उक्त कविता Eric Segal के उपन्यास 'Love Story' से प्रभावित है|
आशा है आपको पसंद आई - अनाड़ी Ashish