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September 27, 2011

अवसर

          प्रिय पाठकों, नमस्कार | मेरी पिछली पोस्ट पर उत्साहवर्धन के लिए मै आप सब का शुक्रगुजार हूँ | जहाँ मेरी पिछली कविता कोरी कल्पना पर आधारित थी, आशा करता हूँ कि आज की कविता आपको वास्तविकता के धरातल पर ले आएगी |
नवरात्रि और दुर्गापूजा की ढेरो शुभकामनाओं के साथ,
-अनाड़ी Ashish


    एक मकड़ी 
    भटक रही है,
    छत से लटके जाले में,
    व्याकुल,
    शिकार की तलाश में,
     जैसे हफ़्तों से 
    उसे, खाने को कुछ न मिला हो|

    इतने में 
    एक पतंगा, अभागा 
    जा फंसा जाले में
    फड़फड़ाता हुआ,
    और मकड़ी ने
    उसे खाया,
    बड़े चाव से|

September 18, 2011

तुम

तुम
सुबह का मधुर कलरव,
तुम
सांध्य में क्षितिज पर बिखरा सुर्ख रंग,
तुम
मंदिर में द्वैदीप्यमान दिये की प्रखर उज्वलता,
तुम
प्रसाद के लिए पंक्तिबद्ध बच्चों की निश्छल लालसा,
तुम
ठिठुराती सर्दी में अचानक खिली धूप,
तुम
जेठ की तपन के बाद बारिश का ठंडा बोसा,
तुम
समंदर की निर्बाध लहरों का अल्हड़पन,
तुम
तपोवन में ध्यानमग्न योगी का अविचल तप,
तुम
बिछड़कर मिलने का सुखद एहसास,
या
मेरे एकाकी मन का एक और अपूर्ण प्रतिबिम्ब
हो तुम|