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November 27, 2011

मैं फिर अकेला हूँ...




जिन्दगी सिसक रही थी    
ठहरा-ठहरा था सब,    
बेज़ार, बेरंग पतझड़ सा;    

तुम आई    
लगा जीना कुछ है    
एक उद्देश्य मिला था    
रोशनी देखी थी तुममें;    

    फिर हवा का झोंका आया
    ले गया नव-कुसुमित खुशियों को,
    रोशनी को, तुमको
    मुझसे छीन; कहीं दूर;

    एक बार फिर अँधेरा है
    फिर जिन्दगी वीरान है
    एक बार फिर अकेला हूँ मैं |

उक्त कविता Eric Segal के उपन्यास 'Love Story' से प्रभावित है|
आशा है आपको पसंद आई - अनाड़ी Ashish

October 25, 2011

कब मनाएंगे दीपावली?

दिवाली और धनतेरस की शुभकामनाओं के साथ,
 -अनाड़ी ASHISH


आज दीपावली है,  
सारा जग प्रकाशित है  
दीप श्रृंखलाओं से,  
अँधेरा मिटाने को  
हजारों दीपक जले हैं  

किन्तु अंतर्मन का क्या  
वहां तो अज्ञानता का तिमिर है,  
अविश्वास का घना कोहरा है  
और इर्ष्या की कालिख भी,  

मै सोच रहा हूँ ; क्या  
कभी हटेगी निराशा की बदली   
कब होगा ज्ञान का प्रकाश,  
कभी जल पायेगी सौहार्द की लौ  
कब घुलेगी प्रेम की मिठास,  

काश, ऐसा शीघ्र हो ;  
तब हर दिन मानेगी दिवाली,  
और मिट जायेगा इस जीवन से,  
धरा से, तम का निशान |  

October 14, 2011

आखें...

नमस्ते, पाठकों | आँखें कभी छुपाये रहती हैं कितनी ख्वाहिसें कितने सपने और कभी कितनी सहजता से कहे देती हैं कुछ अकथ कहानियां; प्रेम, खुशियाँ सुख-दुःख सब कुछ तो बयां करती आई हैं आँखें | सुंदरियों के नैना तो हमेशा से कवियों और गीतकारों को उलझाते आये हैं | प्रस्तुत पंक्तियाँ भी कुछ ऐसे ही भाव व्यक्त करती हैं...आशा है आपको पसंद आएँगी |
-अनाड़ी Ashish


    रात सी काली स्याह आँखें
    जिनमें जीवन के अनकहे-अनछुए रहस्य छुपते हों,
    अँधेरे में;


    तारों सी चमकीली आँखें 
    जहाँ ताकने पर हताशा को भी एक किरण दिखाई दे,
    आशा की;


    कमलिनी सी कोमल आँखें 
    जो हजारों इच्छाएं और लाखो सपने संजोये हो, 
    परत दर परत;


    सीपिया सजल आँखें
    जिनमें अश्रु-पूरित मोतियों के भण्डार भरे हों,
    असीमित, अनंत;


    नशीली, शर्मीली आँखें 
    जिनकी झलक मधुशाला के नशे को फीका कर दे;
    ऐसी आँखों में 
    झांकने का,
    डूबने का, उतराने का,
    मन करता है|
          *image source The Wright Stuff

September 27, 2011

अवसर

          प्रिय पाठकों, नमस्कार | मेरी पिछली पोस्ट पर उत्साहवर्धन के लिए मै आप सब का शुक्रगुजार हूँ | जहाँ मेरी पिछली कविता कोरी कल्पना पर आधारित थी, आशा करता हूँ कि आज की कविता आपको वास्तविकता के धरातल पर ले आएगी |
नवरात्रि और दुर्गापूजा की ढेरो शुभकामनाओं के साथ,
-अनाड़ी Ashish


    एक मकड़ी 
    भटक रही है,
    छत से लटके जाले में,
    व्याकुल,
    शिकार की तलाश में,
     जैसे हफ़्तों से 
    उसे, खाने को कुछ न मिला हो|

    इतने में 
    एक पतंगा, अभागा 
    जा फंसा जाले में
    फड़फड़ाता हुआ,
    और मकड़ी ने
    उसे खाया,
    बड़े चाव से|

September 18, 2011

तुम

तुम
सुबह का मधुर कलरव,
तुम
सांध्य में क्षितिज पर बिखरा सुर्ख रंग,
तुम
मंदिर में द्वैदीप्यमान दिये की प्रखर उज्वलता,
तुम
प्रसाद के लिए पंक्तिबद्ध बच्चों की निश्छल लालसा,
तुम
ठिठुराती सर्दी में अचानक खिली धूप,
तुम
जेठ की तपन के बाद बारिश का ठंडा बोसा,
तुम
समंदर की निर्बाध लहरों का अल्हड़पन,
तुम
तपोवन में ध्यानमग्न योगी का अविचल तप,
तुम
बिछड़कर मिलने का सुखद एहसास,
या
मेरे एकाकी मन का एक और अपूर्ण प्रतिबिम्ब
हो तुम|